करेला भवानी मंदिर, छत्तीसगढ़ |
करेला भवानी मंदिर छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिला के भंडारपुर नामक गांव के समीप स्थित है, यह मंदिर तहसील ढारा के अंतर्गत आता है, जिसे भंडारपुर करेला के नाम से जाना जाता है, तथा इस स्थान को भवानी डोंगरी के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहां के जमीन पर बीज लगाए बिना ही करेले के पौधे अपने आप ही उग जाते है, जिसके कारण एक गांव को छोटा करेला और दूसरे गांव को बड़ा करेला के नाम से पहचाना जाता है, घने वनों और पहाड़ों के गोद में बसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण एकांत शांत वातावरण में विराजमान है,
नवरात्र मेला, करेला भवानी मंदिर, छत्तीसगढ़ |
करेला भवानी मंदिर में नवरात्र में मेला...
मां करेला भवानी, छत्तीसगढ़ |
करेला भवानी माता के गांव में आवागमन का कहानी....
कहा जाता है, की आज से लगभग 250 साल पहले इस गांव में नारायण सिंह कुंवर नाम का गौटिया रहता था, और वह गांव के ग्रामीणों के साथ अपने घर के बाहर बैठें थे, जेठ बैशाख का महीना था, और दिन के दोपहर में एक कन्या उसके पास आई, कन्या के चेहरे पर तेज था, श्वेत वस्त्र धारण किए हुए उस कन्या ने नारायण सिंह से अपने आराम करने के लिए जगह मांगी, तब नारायण सिंह ने यह विचार किया, की हो सकता है यह कन्या उसके गांव से आई होगी, गर्मी के वजह से थक गई होगी, यह सोचकर नारायण सिंह ने कन्या को अपने घर में आराम करने के लिए कहा, किंतु वह कन्या जंगल के तरफ वापस जाने लगी, यह देखकर नारायण सिंह तथा अन्य सभी ग्रामीण चिंचित हो गए, और कन्या के पीछे पीछे जाने लगे, कन्या जंगल में चलकर पहाड़ के ऊपर मकोइया के झाड़ी के नीचे जाकर बैठ गई, नारायण सिंह और वहां के ग्रामीणों ने कन्या से पूछा की तुम कौन हो, और इस जंगल में क्या करने और क्यों आई हो, तब कन्या ने कहा की मैं अब यहीं रहूंगी, और आप मेरे रहने के लिए एक मंदिर बनवा दो इतना कहकर वहां से अदृश्य हो गयी,
नारायण सिंह और गांव वालों के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था, कन्या को मां भवानी का रूप मानकर उस स्थान पर मंदिर बनाने के लिए जब खुदाई करने लगे, तभी वहां से एक पाषाण प्रतिमा (मूर्ति) निकला, जिसे मां भवानी के रूप में उस स्थान पर झोपड़ी नामक मंदिर में स्थापित किया गया था। धीरे धीरे समय बीतता गया, और यह स्थान जन स्मृति से विस्मृत होता गया, यह घटना करीब आज से 250 साल पूर्व घटा था, इतने वर्ष बीत जाने के बाद पहाड़ पर बना मां भवानी का मंदिर समय के साथ पेड़ पौधों से ढक गया था, लोग जंगल व पहाड़ों से कम आना जाना करते है, धीरे धीरे यह मंदिर गांव वालों का यादों में सिमटते चला गया।
आज से लगभग 25 वर्ष पहले किसी दूसरे स्थान से गोरखनाथ साधु आकर इस पहाड़ी पर रहने लगे, पहाड़ के ऊपर एक कुआं बना है, जिसका उपयोग गोरखनाथ बाबा किया करते थे, और वे पहाड़ पर ही ध्यानमग्न रहते थे, एक दिन जब गोरखनाथ साधु ध्यानमग्न अवस्था में बैठे थे, उसी समय घास से ढके हुए एक पाषणखंड से तेज प्रकाश निकला, जब गोरखनाथ बाबा ने यह देखा तो उसे समझ नही आ रहा था, की ये प्रकाश कहां से आ रहा है, तब उन्होंने उस स्थान को साफ सफाई किया और देखा तो पता चला की वह प्रकाश मूर्ति के समान एक पत्थर से आ रहा है, गोरखनाथ बाबा ने इसका जानकारी गांव वालों को दिया, और गांव वालों से निवेदन किया की मां भवानी आपके गांव में कई वर्षों से विराजमान है, और आप सब लोग मां भवानी के लिए मंदिर का निर्माण करवाए, गांव के ग्रामीणों ने गोरखनाथ बाबा का बात मानकर मंदिर का निर्माण करवाया, वर्तमान समय में इस मंदिर को मां करेला भवानी के नाम से जाना जाता है, और उसी के आधार पर मां भवानी का नाम करेला भवानी पड़ा।
पुरातत्त्व विभाग के दृष्टि के आधार पर इस स्थान में कुछ पुरातात्विक प्रतिमाएं बिखरा हुआ है, जिसमे एक योद्धा का प्रतिमा है, जिसे बाबा बंछोर देव कहा जाता है, योद्धा घोड़े पर सवार है, और एक पाषणखंड पर गोरखनाथ बाबा का प्रतिमा बना हुआ है,