एक दिन बादशाह अकबर के दरबारियों ने बादशाह अकबर से शिकायत किया, 'हुजूर' आप सब प्रकार के कार्य बीरबल को ही सौंप देते है, क्या हम कुछ भी कार्य नहीं कर सकते ?
बादशाह अकबर ने कहा - ठीक है मैं अभी इसका फैसला करता हूं।
बादशाह अकबर ने एक दरबारी को बुलाया और उससे कहा - मैं तुम्हे तीन रूपये देता हूं, और जाओ इन तीन रूपये के तीन अलग - अलग चीजें लाना, जिसमे से प्रत्येक चीजों का कीमत एक रूपये होना चाहिए।
पहला चीज यहां का नहीं होना चाहिये।
दूसरा चीज वहां का नहीं होना चाहिये।
तीसरा चीज न यहां का और न वहां का होना चाहिये।
दरबारी तुरंत उसी वक्त बाजार गया - और दुकानदार के पास जाकर उससे ये तीनों चीजे मांगा।
दुकानदार दरबारी के बात को सुनकर हसने लगा और उससे कहा - ये तीनों चीज कहीं भी मिल नहीं सकता।
दरबारी ने उन तीनों चीजों को वहां अनेक दुकानों पर खोजा लेकिन जब उसे तीनों चीज कहीं नहीं मिला, तो निराश होकर वापस दरबार में लौट आया।
दरबारी ने आकर बादशाह अकबर को बताया - ये तीनों चीजें कहीं भी किसी भी कीमत पर नहीं मिल सकता, अगर बीरबल ये तीनों चीजें ला सके तो जानेंगे।
बादशाह अकबर ने बीरबल को बुलाया और उससे कहा जाओ ये तीनों चीजें लेकर आओ।
बीरबल ने कहा - 'जहांपनाह' कल तक ये तीनों चीजें आपके सेवा में अवस्य हाजिर कर दूंगा।
अगले दिन बीरबल जैसे ही दरबार में आए तो...
बादशाह अकबर ने पहले दिन वालें बात बीरबल को याद दिलाते हुए पूछा - क्यों क्या हमारे लिए वो तीनों चीजें ले आए ?
बीरबल ने शीघ्र कहा - मैंने पहला रुपया एक फकीर को दे दिया जो सीधा वहां से भगवान के पास जा पहुंचा, दूसरा रुपया मैंने मिठाई खरीदने में खर्च किया, जो यहां काम आ गया, तथा तीसरा रुपया मैंने जुआ खेलने में लगा दिया, जो न यहां काम आएगा और न वहां (परलोक) में काम आएगा।
बीरबल के इस बात को सुनकर सभी आश्चर्यचकित हो गए, और बादशाह अकबर ने बीरबल को बहुत से उपहार दिया।