जब चीन ने भारत पर कोरोना वायरस covid-19 फैलाया तो भारत ने इसका तोड़ के लिए वैक्सीन बनाया, अब भारत ऐसे खतरनाक मिशन का एक्सपेरिमेंट कर रहा है, अगर यह सफल रहा तो पूरे ब्रह्मांड भारत का राज होगा, जब इस मिशन का पता चला की भारत सबसे बड़ा खतरनाक एक्सपेरिमेंट कर रहा है, तो जान कर दुनिया की वैज्ञानिक आश्चर्यचकित हो गये, भारत ने करीब 1500 करोड़ रुपए खर्च करके तमिलनाडु में इस बेहद खुफिया मिशन प्रोजेक्ट को शुरू किया है।
तमिलनाडु में स्थित नीलगिरी पहाड़ों को नीचे से खोदकर कर तकरीबन 2 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाया जायेगा, जिसमे दुनिया का सबसे खतरनाक शोध किया जायेगा, यहां भारत की वैज्ञानिक खतरनाक मिशन की शोध में लगा है, अगर यह एक्सपेरिमेंट सफल रहा, तो भारत चीन,पाकिस्तान और तालिबान से निपटने में सक्षम हो जायेगा, इस मिशन के नाम सुनकर दुनिया की वैज्ञानिक की रोंगटे खड़े हो गये है, जहां पर सीक्रेट मिशन की तैयारी चल रहा है, वहां पर पहाड़ों पर कटीले तार लगाया गया है, जहां पर एक परिंदा भी पैर नही मार सकते है।
यहां सीसीटीवी कैमरा सर्विलेंस इलेक्ट्रॉनिक गैजेट बैरीकीट और सैटेलाइट से निगरानी और चौबीसों घंटे कमांडो की तैनाती किया हुआ है, भारत में जो एक्सपेरिमेंट हो रहा है, वो स्विटरलैंड की एक्सपेरिमेंट से अलग है, भारत रिसर्च कर रहा है न्यूट्रिनो नाम के कणों पर न्यूट्रिनो में ना कोई चार्ज ना कोई आवेश होता है, और ना ही न्यूट्रिनो का कोई वजन होता है, जब काम शुरू होगा यहां एक खास साइन्ˈटिफ़िक् लैब होगा, इस लैब में दुनिया का सबसे बड़ा चुंबक लगाया जायेगा, जिसका वजन 50 टन है, इस चुंबक की सहायता से न्यूट्रिनो नाम की इन कणों को एक खास रेखा में फोकस किया जा सकेगा।
ताकि न्यूट्रिनो के कणों को दो विपरीत दिशा में न्यूट्रो उत्पन्न करने वाले कणों को सामने से टक्कर कराया जायेगा, जिससे तरंगों के साथ चलने वाले न्यूट्रिनो की आमने सामने टक्कर करवाएंगे, ऐसा हो पर इससे होने वाले ही न्यूट्रिनो का पता लगा पायेगा, वैज्ञानिक इस पदार्थ के मूल कणों की खोज कर रहे है, अगर वैज्ञानिक इन पर सफल रहा तो वो इसने पदार्थ भी बना पायेगा, यह प्रोजेक्ट इतनी बड़ा है, की तमिलनाडु के पूरे नीलगिरी पहाड़ के नीचे 2 किलोमीटर का लंबाई में इसका विस्तार है, जो प्रोजेक्ट का यही विशालता और सीक्रेट है।
न्यूट्रिनो ब्रम्हांड से धरती पर पहुंचने वाले सबसे गतिशील अणु है, यह ब्रम्हांड में हर जगह विचरण करते रहते है, न्यूट्रिनो को देखना या पकड़ना नामुमकिन है, यह तभी नजर आते है जब नाभिकीय प्रतिक्रियाएं हो, वैज्ञानिकों का मानना है, की न्यूट्रिनो सूर्य या अन्य तारो और ब्रम्हांड के सक्रिय गंगाओं से धरती पर पहुंचते रहते है, अनुमान है की हर सेकंड हमारे त्वचा की हर सेंटीमीटर पर सूर्य से आये 65 अरब न्यूट्रिनो टकराते है।