भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है...

Jayant verma
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Bhoramdev kavardha
भोरमदेव मंदिर, कवर्धा (छत्तीसगढ़)


भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले कवर्धा से 18.6 तथा रायपुर से 134 किलोमीटर दूर चौरा गांव में स्थित है, और मैकलपर्वत के चारो से घिरा हुआ है, यह भारत का प्राचीन हिंदू मंदिर है, यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, मंदिर के बाहरी दीवारों पर वास्तुकला और कामासूत्र का शिल्पकारी किया गया है, जो देखने में सबसे जटिल और भव्य लगता है, मंदिर के सामने एक सुंदर सा तालाब है, इस मंदिर को 11वीं शताब्दी के राजा नागवंशी गोपाल देव ने बनवाया था, कहा जाता है की राजाओं का देवता भोरमदेव थे, तथा वह भगवान के भक्त और उपासक थे, भोरमदेव शिव का ही एक नाम है, जिसके कारण यह मंदिर का नाम भोरमदेव पड़ा, इस मंदिर का बनावट खजुराहो तथा कोणार्क मंदिर के समान है, इसी लिए इस मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है,


भोरमदेव मंदिर का बनावट....

भोरमदेव मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर है, यह मंदिर एक सुंदर नागर शैली का उदाहरण भी है, मंदिर में तीनो और से प्रवेश किया जा सकता है, मंदिर के अंदर मंडप पर तीनों प्रवेश द्वार से पहुंचा जा सकता है, और इस मंदिर को पांच फिट ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है, मंडप का लम्बाई 60 फिट है, और 40 फिट चौड़ाई है, मंडप के बीच में 4 खम्बे है, तथा मंदिर के चारो ओर किनारे पर 12 खम्बे है, प्रत्येक खम्बो पर किचन बना हुआ है, जिन्होंने मंडप के छत को संभाल कर रखा है, और सभी खम्बो को बहुत ही सुंदर एवम कलात्मक तरीके से बनाया गया है, मंदिर के अंदर मंडप में भगवान विष्णु माता लक्ष्मी एवं गरुड़ देव का मूर्ति स्थापित है, और भगवान के ध्यान मुद्रा में बैठे एक राजपुरुष का मूर्ति रखा हुआ है, और मंदिर के अंदर गर्भ गृह में कई मूर्तियां स्थापित है, तथा इन सब मूर्तियों के बीच में एक काले पत्थर का शिवलिंग स्थापित है, मंदिर के गर्भ गृह में पंचमुखी नाग का एक मूर्ति है, साथ ही गणेश जी का मूर्ति नृत्य करते हुए तथा पुरुष का मूर्ति ध्यानमग्न में एवं स्त्री पुरुष की मूर्ति उपासना करते हुए है,  मंदिर के ऊपर भाग पर शिखर नही है, मंदिर के बाहर दीवारों पर चारो ओर भगवान विष्णु,शिव,गणेश आदि देवी देवताओं के मूर्तियां लगा हुआ है, और साथ इसके साथ साथ देवी सरस्वती तथा शिव का अर्धनारीश्वर और भगवान विष्णु माता लक्ष्मी एवं वामन अवतार का भी मूर्तियां दीवार पर लगा है,


भोरमदेव मंदिर का निर्माण काल

मंदिर के अंदर मंडप में रखा हुआ, एक दाढ़ी मूंछ वाला योगी पुरुष का बैठा हुआ मूर्ति है, इस योगी पुरुष का मूर्ति में एक लेख लिखा है, जिसमे मंदिर के निर्माण काल का समय कल्चुरी संवत 8.40 दिया गया है, इसका अर्थ यह है की 10 वीं शताब्दी के आस पास का समय होता है, इससे यह साफ स्पष्ट होता है, की यह मंदिर का निर्माण छटवें फनी नागवंशी राजा गोपाल देव के शासन काल में हुआ था,


भोरमदेव मंदिर का रहस्य....

भोरमदेव मंदिर के मंडप में भगवान शिव ( ठाकुरदेव ) का जो मूर्ति है, उसमे से आज भी बकरे का गंध आता है,


छेरकी महल

छेरकी महल, कवर्धा (छत्तीसगढ़)

छेरकी महल के आखिरी मंदिर में एक अधगड़ा शिव लिंग है, मंदिर के छत पर कमल के आकार में सुंदर शिल्पकारी किया गया है, और प्रवेश द्वार पर भी बारीक खुदाई किया गया है,


मढ़वा महल का निर्माण

मढ़वा महल, कवर्धा (छत्तीसगढ़)

यह स्मारक वास्तव में प्राचीन शिव मंदिर है जो भोरमदेव मंदिर के दक्षिण में लगभग एक किमी. की दूरी पर स्थित है, इस पश्चिमभिमुख मंदिर में मण्डप एवं गर्भगृह दो अंग है, यह प्राचीन मंदिर स्थानीय बोली में मण्डवा या मढ़या महल कहा जाता है, मढ़वा - मण्डवा शब्द मण्डप का बिगड़ा रूप है । अतः अनुमान है, कि इसके विशाल सोलह खंभी मण्डप के कारण ही इसका नाम बाद में मण्डवा या मढ़वा महल पड़ गया होगा, इसका मण्डप 16 प्रस्तर स्तंभों पर आधारित है, मंदिर का गर्भगृह मण्डप के धरातल से डेढ़ मीटर गहरा है, इसके कृष्ण प्रस्तर निर्मित प्रवेश द्वार पुष्पीय आकृतियां एवं लतावल्लरी से अलंकृत हैं, तथा दोनों ओर शिव प्रतिहार खड़े है, सिर दल पर ललाटबिन्च में गणेश का अंकन है, तथा गर्भगृह में जलधारी पर शिवलिंग स्थापित है, गर्भगृह की बाहृय भित्तियों पर कामक्रीड़ारत मिथुनमूर्तियों का अंकन हुआ है, मण्डप एवं शिखर भाग का जीर्णोद्धार किया गया है, यह मंदिर का निर्माण स्थानीय चवरापुर के फणिनागवंशी राजा रामचन्द्रदेव की पत्नी अम्बिकादेवी के द्वारा 5 वीं शताब्दी ईस्वी (सन् 1349) में करवाया गया था, यह मंदिर स्थानीय फणिनागवंशीय राजाओं के राजस्वकाल में निर्मित मंदिरों का अच्छा उदाहरण है, इस मंदिर के बाहरी दीवारों पर कामासूत्र में 54 मुद्राएं बना हुआ है, जो उस समय के नागवंशी राजाओं में प्रचलित तांत्रिक विद्या, उपासना और संस्कृति को दर्शाता है।


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