परमात्मा और किसान, हिंदी कहानी

Jayant verma
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एक बार एक किसान परमात्मा से बड़ा नाराज हो गया, कभी बाढ़ आ जाये, कभी सूखा पड़ जाए, कभी धूप बहुत तेज हो जाए, तो कभी ओले पड़ जाये, हर बार कुछ ना कुछ कारण से उसके फसल थोड़ा ख़राब होते जा रहा था।


एक दिन किसान बड़ा तंग आ कर परमात्मा से  कहा - देखिये प्रभु, आप परमात्मा हैं, लेकिन लगता है आपको खेती-बाड़ी का ज्यादा जानकारी नहीं है, आपसे एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिये, जैसा मै चाहू वैसा मौसम हो, फिर आप देखना मै कैसे अन्न के भण्डार भर दूंगा, परमात्मा मुस्कुराये और कहा ठीक है, जैसा तुम कहोगे वैसा ही मौसम दूंगा, मै तुम्हारे काम में दखल - अंदाजी नहीं करूँगा।


किसान ने गेहूं का फ़सल बोया, जब धूप चाहा, तब धूप मिला, जब पानी चाहा तब पानी, तेज धूप, ओले, बाढ़, आंधी तो उसने आने ही नहीं दीया, समय के साथ फसल बड़ा हो गया, और किसान का ख़ुशी भी क्योंकि ऐसे फसल तो आज तक नहीं हुआ था, किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को, की फ़सल कैसे करते हैं, बेकार ही इतने बरस हम किसानो को परेशान करते रहे।


जब फ़सल काटने का समय आया, तो किसान बड़े गर्व से फ़सल काटने गया, लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा, एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया, क्योंकि गेहूं का एक भी बाली के अन्दर गेहूं का दाना नहीं था, सारे बालियाँ अन्दर से खाली था। 


बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से कहा - प्रभु ये क्या हुआ?


तब परमात्मा बोले - ये तो होना ही था, तुमने पौधों को संघर्ष का करने का ज़रा सा भी मौका नहीं दिया. ना तेज धूप में उनको तपने दिया, ना आंधी ओलों से जूझने दिया, उनको किसी प्रकार के चुनौतीयों का अहसास जरा भी नहीं होने दिया।


इसीलिए सब पौधे अंदर से खोखले रह गए, जब आंधी आता है, तेज बारिश होता है, ओले गिरते हैं, तब पौधा अपने बल से ही खड़ा रहता है, वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है, और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है, वहीं उसे शक्ति देता है, उर्जा देता है, उसके जीवटता को उभारता है।


सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने, हथौड़ी से पिटने, गलने जैसे चुनौतियों से गुजरना पड़ता है, तभी उसके स्वर्णिम आभा उभरता है, और उसे अनमोल बनाता है।


उसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष ना हो, चुनौतीयां ना हो तो आदमी अंदर से खोखला ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं आ पाता, ये चुनौतियां ही हैं, जो इंसान रूपी तलवार को धार देता हैं, उसे शक्त और प्रखर बनाता हैं।


अगर प्रतिभाशाली बनना है, तो चुनौतियां को स्वीकार करना ही पड़ेंगा, अन्यथा हम अंदर से खोखले ही रह जायेंगे, अगर जिंदगी में प्रखर बनना है ,प्रतिभाशाली बनना है ,तो संघर्ष और चुनौतियों का डटकर सामना तो करना ही पड़ेगा।

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