महाराज कृष्णदेव राय अपने बचपन में सुने कथा के अनुसार यह विश्वास करते थे कि संसार-ब्रह्मांड का सबसे उत्तम, मनमोहक और सुंदर जगह स्वर्ग है। एक दिन अचानक महाराज को स्वर्ग देखने का इच्छा उत्पन्न होता है, इसलिए दरबार में उपस्थित मंत्रियों से पूछते हैं।
बताइए स्वर्ग कहाँ है ?
सारे मंत्रीगण सिर खुजाते चुपचाप बैठे थे, पर चतुर तेनालीराम महाराज कृष्णदेव राय को स्वर्ग का पता बताने का वचन देते है और इस काम के लिए दस हजार सोने के सिक्के और दो महीने का समय मांगते हैं।
महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम को सोने के सिक्के और दो महीने का समय दे देते हैं और यह शर्त रखते हैं, कि अगर तेनालीराम ऐसा न कर सके तो उन्हे कठोर दण्ड दिया जाएगा, अन्य सभी दरबारी तेनालीराम का कुशलता और चतुराई से काफी जलते हैं, और इस बात से मन ही मन बहुत प्रसन्न होते हैं, कि तेनालीराम स्वर्ग को नहीं खोज पाएगा और सजा जरूर भुगतेगा।
दो महीने के समय बीत जाने के बाद महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम को दरबार में बुलवाते हैं, तेनालीराम कहते हैं की उन्होने स्वर्ग खोज लिया है, और वे कल सुबह स्वर्ग देखने के लिए प्रस्थान करेंगे।
अगले दिन तेनालीराम, महाराज कृष्णदेव राय और उनके खास मंत्रीगणों को एक सुंदर स्थान पर ले जाते हैं। जहां खूब सुंदर हरियाली, चहचहाते पक्षीयों, और वातावरण को शुद्ध करने वाले पेड़ पौधे होते हैं, जगह का खूबसूरत सौंदर्य देख महाराज कृष्णदेव राय बहुत प्रसन्न होते हैं, पर उनके अन्य मंत्रीगण स्वर्ग देखने का बात महाराज कृष्णदेव राय को याद दिलाते रहते हैं।
महाराज कृष्णदेव राय भी तेनालीराम से उसका किए गए वादा निभाने को कहते हैं, पर उसके जवाब में तेनालीराम कहते हैं, कि जब हमारा पृथ्वी पर फल, फूल, पेड़, पौधे, अनंत प्रकार के पशु, पक्षी, जीव, जंतु और अद्भुत वातावरण और अलौकिक खूबसूरत सौन्दर्य है फिर स्वर्ग का कामना क्यों करते हो? जबकि स्वर्ग जैसा कोई जगह है भी की नहीं इसका कोई प्रमाण नहीं है।
महाराज कृष्णदेव राय को चतुर तेनालीराम का बात समझ आ जाता है, और वे उनका प्रसंशा करते हैं, बाकी मंत्री जलन के मारे महाराज को दस हज़ार सोने के सिक्कों की याद दिलाते हैं। तब महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम से पूछते हैं कि उन्होंने उन सिक्को का क्या किया?
तब तेनालीराम कहते हैं कि उन्होने तो वह सिक्के खर्च कर दिये।
तेनालीराम कहते हैं कि आपने जो दस हजार सोने के सिक्के दिये थे उनसे मैंने इस जगह से उत्तम पौधे और उच्च कोटी के बीज खरीदे हैं, जिनको हम अपने राज्य विजयनगर की जमीन में लगाएंगे, ताकि हमारा राज्य भी इस सुंदर स्थान के समीप आकर्षक और उपजाऊ बन जाए।
महाराज इस बात से और भी अति प्रसन्न हो जाते हैं और तेनालीराम को ढेरों इनाम देते हैं, एक बार फिर बाकी मंत्रीगण अपना छोटा - सा मुंह ले कर रह जाते हैं।