कुसुमपुर नगर में एक राजा राज्य करता था, उसके नगर में एक ब्राह्मण था, जिसके चार बेटे थे।
लड़कों के बड़े होने पर ब्राह्मण मर गया और ब्राह्मणी भी उसके साथ सती हो गयी, उनके रिश्तेदारों ने उनका धन छीन लिया, वे चारों भाई अपने नाना के यहाँ चले गये।
लेकिन कुछ दिन बाद वहाँ भी उनके साथ बुरा व्यवहार होने लगा, तब चारों भाई ने मिलकर सोचा कि कोई विद्या सीखना चाहिए।
यह सोच करके चारों भाई चार दिशाओं में चले गए, कुछ समय बाद वे विद्या सीखकर वापस मिले।
मैंने ऐसा विद्या सीखा है, कि मैं मरे हुए प्राणी के हड्डियों पर मांस चढ़ा सकता हूँ।
एक ने कहा - मैंने ऐसा विद्या सीखा है कि मैं मरे हुए प्राणी की हड्डियों पर मांस चढ़ा सकता हूँ।
दूसरे ने कहा - मैं उसके शरीर में खाल और बाल दोनों पैदा कर सकता हूँ।
तीसरे ने कहा - मैं उसके शरीर के सभी अंग को बना सकता हूँ।
चौथा बोला - मैं उसके शरीर में जान डाल सकता हूँ।
फिर वे अपने विद्या का परीक्षा लेने जंगल में गये, वहाँ उन्हें एक मरे हुए शेर का हड्डियाँ मिला, उन्होंने उसे बिना जाने - पहचाने ही उठा लिया तथा एकत्र करके ले आये।
एक ने उसमें माँस डाला, दूसरे ने खाल और बाल दोनों पैदा किये, तीसरे ने शरीर सभी अंग बनाये और चौथे ने उसमें प्राण डाल दिये और तब शेर जीवित हो उठा, और बहुत वह भूखा था, जिसके कारण उसने चारों भाइयों को मार कर खा गया।
यह कहानी सुनाकर बेताल बोला - हे राजन विक्रम, बताओ कि उन चारों में शेर बनाने का अपराध किसने किया?
राजा विक्रम ने कहा - जिसने प्राण डाले उसने, क्योंकि बाकी तीनों भाइयों को यह पता ही नहीं था कि वे शेर बना रहे हैं, इसलिए उनका कोई दोष नहीं है।
यह सुनकर बेताल बोला - राजन् तुमने मार्ग में न बोलने का शर्त तोड़ दी है, और वह फिर पेड़ पर जा लटका, राजा विक्रम फिर से बेताल को पकड़ने के लिए उनके पीछे भागा।